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घटनाएँ / नरेश अग्रवाल

1,596 bytes added, 07:14, 9 मई 2011
और जमीन पर रख देने से
सारी थालियां चुप हो जाती हैं।
 
वे क्षण जो मोतियों की लडिय़ों की तरह
मेरे पास से गुजरे
मैंने उन्हें चन्दन की तरह माथे से लगाया
और उनकी आराधना की।
 
आभारी हूं मैं इस भूमि और आकाश का
जिसने मुझे रहने की जगह दी
और उन्हें पूरा हक था मेरी आत्मा को खोलकर देखने का
और मुझसे हर सवाल पूछने का ।
 
वे सारे क्षण जब मैंने किसी से प्यार किया था
कभी लौट कर नहीं आये
मैंने उन्हें पाने के लिए
अपनी भाषा में लड़ाई की
और उन पर लगातार लिखता रहा।
 
वो सारी चीजें लुप्त हो गयी हैं, जो
मैं तुम्हें फिर से याद करता हूं
मैं फिर से अपनी उदास स्मृतियों में
रंग भरने की कोशिश करता हूं
और पाता हूं आज भी वे जिंदा हैं
उन्हें अब भी मेरी जरूरत है
और उनकी हंसी को चारों ओर पहुंचाया जा सकता है।
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