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'''किसे पता क्या मालूम था ?'''
क्या मालूम था
नंगे पांव, बदन पर
केवल फटी लंगोटी होगी
पानी बिना
सूख जायेगी
हिस्से में
आयेगी केवल
चिंता, भूख और बेकारी ,
खाली होगा पेट दिनोंदिन
खाल पीठ की मोटी होगी।
वोटों के
रगड़े झगड़े में
रोज कचेहरी
जा जाकर पैरों के तलवे,
होगा शीश पांव पर उनके
जिनकी तबियत छोटी होगी
लाठी के
साये मंे में उनको
अपना जीवन जीना होगा
आंख उठाने की
जुर्रत पर
घूंट दण्ड का पीना होगा
छत के नाम शीश नभ होगा
किस्मत ऐसी खेाटी होगी
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