{{KKRachna
|रचनाकार=नीलेश रघुवंशी
|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत।
दिखती है जब कोई औरत । घबराई हुई-सी प्लेटफॉ़म प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए
आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है । है।
मेरी माँ की तरह
ओ स्त्री !
उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों?
क्यों, आख़िर क्यों ? क्यका क्या पक्षियों का कलरव झूठमूठ ही बहलाता है हमें ?</poem>