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बाल कविताएँ / भाग १ / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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18:28, 25 मई 2008
दादा जी की पॉंचवी पंक्ति में करत था, जिसे करते किया है। एवं एक-दो जगह पूर्ण विराम के पहले का विराम
सूरज उगते वापस आते।<br>
नहा-धोकर पूजा
करत
करते
<br>
जोश सभी के मन में भरते।<br>
रोमा घर की पहरेदार<br>
साथ में उसके पिल्ले
चार ।
चार।
<br>
चारों पिल्ले हैं शैतान<br>
इधर- उधर हैं दौड़ लगाते<br>
बिना बात भौंकते हैं जब<br>
डाँट बहुत रोमा की खाते।<br>
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अशोक कुमार वर्मा