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{{KKRachna
|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
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}}
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कभी आदम से जो इन्सान हुआ,
आज इन्सान से हैवान हुआ...

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हैं पयम्बर उसी परवरदिगार के जो सभी,
तेरा अल्लाह, मेरे राम से बेहतर क्यूँ है?
जो फ़र्क़ दैर-ओ-हरम में न वाकई कोई,
है घर जो राम का, अल्लाह का न घर क्यूँ है?

(दैर-ओ-हरम - पूजा की जगह, मंदिर / मस्जिद)

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अगर वो होता वाक़ई मक़ीने-बुतख़ाना,
क्या अपने आशियाँ को यूँ ही जलाने देता?

(मक़ीने-बुतख़ाना - पूजा की जगह में रहनेवाला; आशियाँ - घर)

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नाव कागज़ की लिए नाख़ुदा तलाश रहे हो?
ये पत्थरों में कहाँ तुम ख़ुदा तलाश रहे हो?
औ' अगर वाक़ई मक़ीने-संगे-मर्मर है,
तो खंजरों से काहे उसका बुत तराश रहे हो?

(नाख़ुदा - कश्ती को चलाने वाला; मक़ीने-संगे-मर्मर - संगे-मर्मर में रहनेवाला - ख़ुदा से मक्सद है क्योंकि पूजा के घर अक्सर संगे-मर्मर से बनते हैं)

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