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|रचनाकार=उमेश चौहान}}{{KKPustak|संग्रहचित्र=.jpg|नाम=जिन्हें डर नहीं लगता / |रचनाकार=[[उमेश चौहान]]|प्रकाशक= शिल्पायन, नई दिल्ली |वर्ष= 2009|भाषा=हिन्दी|विषय=कविता|शैली=--|पृष्ठ= |ISBN=--978-81-89918-38-5|विविध=--
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'''जिन्हें डर नहीं लगता''' जिन्हें तैरना नहीं आताउन्हीं * [[ नई नस्ल के लिए ही डालनी पड़ती हैंकबूतर / उमेश चौहान]] नदी में नावें और* [[ जाग्रत से अधिक चेतन / उमेश चौहान]]बनाने पड़ते हैं उन पर पुल* [[ बकरे / उमेश चौहान]]ताकि पार कर सकें वे नदी कोबिना डूब जाने के भय के, बूढ़े और अशक्त हों तोअलग होती है बातकिन्तु सक्षम होते हुए भीजो * [[ चिड़िया हार नहीं सीखते तैरनाया तैरना जानते हुए भीतैयार नहीं होते जोपानी में धँसने को,उनके लिए हम प्रायः पीठ झुका करक्यों तैयार हो जाते हैंनाव या पुल बनने के लिए? मानती /उमेश चौहान]]* [[ कूड़ेदान / उमेश चौहान]]* [[ जिन्हें डर नहीं लगताउन्हें,तैरना सहज आ जाता हैहिम्मत के साथपानी में कूद जाने परकिन्तु कभी नहीं सीखा जा सकता तैरनाकेवल किताबें पढ़-पढ़ करअथवा चिन्तन-मनन करके । बाढ़ की विभीषिका मेंजब पलट जाती हैं नावेंबह जाते हैं पुलतब भी बचे रहते हैंनदी की लहरों मेंवे लोग जीवितजिन्हें तैरना आता है, ऐसे लोगों कोनदी की लहरों सेडर नहीं लगतावे हमेशा तत्पर रहते हैंस्वीकारने कोलहरों का हर एक निमंत्रण् । लहरों के निमंत्रण को ठुकराकरतीर पर ठिठुककर तोवही रुके रहते हैंजिन्हें तैरना नहीं आता ।</poem>उमेश चौहान]]
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