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|संग्रह=सच कहने के लिए / अनिल विभाकर
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<Poem>
बौने चढ़ गए पहाड़
तोड़ लिया ज़मीन से रिश्ता
इस युग में कठिन ज़रूर है मेरुदंड की रक्षा
मुश्किल में है नमक की लाज
घोंसले में कब घुस जायेंगे संपोलेसँपोले
कठिन है कहना
सच तो यह भी है
बौने, बौने ही नज़र आएँगे राजसिंहासन पर भी
बड़े कद वाले भी बौनों की तीमारदारी में
जब गाते हैं राग राज, पढते पढ़ते हैं कसीदे वे बौने हो जाते हैं।हैं ।</poem>