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{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदयाल
|संग्रह= }}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem
अपनी
 
अपने लोगों की
 
अपनी तरह की दुनिया
 
अपने ढंग से बनाने के लिए
 
अपनी तरह से
 
कितनी दुनियाओं को उजाड़ते हैं!
 
एक ऐसी दुनिया के लिए
 
जिसकी कि अभी कोई शक्ल नहीं
 
भरी-पूरी, बसी-बसाई दुनिया
किस कदर बेशक़्ल होती जाती हैं!
किस कदर बेशक्ल होती जाती हैं!  जिन्दगियाँ ज़िन्दगियाँ वहाँ खत्म ख़त्म की जाती हैं जहाँ कि जिन्दगी ज़िन्दगी की आरजू की जाती है 
और वहाँ भी
 कि जहाँ से जरा ज़रा बचकर 
निकलना चाहते हैं
 जिन्दगी ज़िन्दगी का सामान जुटाने की 
जद्दोजहद करते
 
मेवाराम, हरनाम सिंह, रमजान मियाँ...
 
काश कि यह दुनिया ऐसी होती,
 इतनी साफसाफ़-सुथरी और सेहतमंद जगह 
कि न कोई यहाँ अस्पताल होता
 
न कूड़ेदान
 न जिन्दगी ज़िन्दगी के धोखे में 
मौत का और कोई सामान!
</poem>
(दिल्ली में आतंकी हमला - 13 सितम्बर, 2008)
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