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शहर के ऊंचे मकानों के तले
रेंगते कीड़े सरीख़े लोग।
औ’ उगकते उगलते हैं विषैला धुंआ
ये निरन्तर दानवी उद्योग।
छटपटाती चेतना होगी तुम्हारी