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Kavita Kosh से
सदियों से उस बंजर जमीं पर
पानी, खाद डालने के बदले
राख, बालू और पत्थर डाला गया,
बन गया वह विशाल, शांत पहाड़
सैकड़ों वर्षों से वह सूरज की
साजिश का शिकार रहा,
अंधेरे में तड़पता, घुटता रहा,
सैकड़ों वर्षों से उस शांत पहाड़ में
अरबों टन आग का गोला जमा है
रोशनी में रहनेवालों
उस अंधेरे में रोशनी जाने दो,
नहीं तो सदियों से मौन रहता आया
वह ज्वालामुखी मुखर विस्फोट कर जायेगा
अपनी आग से जला जायेगा
सदियों की शांति जब भंग होती है
तो आकाश के पृष्ठ पर भी क्रान्ति
का इतिहास बना जाती है</poem>