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हिलाती है गर्दन जब लोमड़ी
 
हिल जाता है सारा जंगल,
 
सारे पेड़-पौधे हिलने और कंपकपाने
 
लगते हैं और उलझ जाती हैं
 
झाड़ियां भयभीत हो
 
सोये सिंह के कान खड़े हो जाते हैं,
 जितना जोर ज़ोर से गरजता है शेर 
प्रतिफल, उतनी शांति छा जाती है जंगल में
 
लोमड़ी सिंह के कान में अकसर धीरे से
 
फुसफुसाती है, तब निरीह मेमने
 
और खरगोश की आंखों में मौत का
 
भयानक दृश्य नाच जाता है
 
जंगल का राजा सिंह निरीह प्राणियों को
 
खाता नहीं, आंख दिखाकर छोड़ देता है,
 
लोमड़ी धीरे-धीरे उसे चट कर जाती है,
 सिंह से खतरा ख़तरा नहीं है जंगलवासी को, खतरा ख़तरा है उन्हें शातिर लोमड़ियों से, 
क्योंकि उनकी आंखों में मायावी प्रेम झलकता है
 
जब भी निरीह प्राणी, निर्विकार उसके
 
पास जाता है, लोमड़ी चुपके से अपने
 
लम्बे नाखून उसकी पीठ में घुसेड़ देती है,
 निरीह प्राणी जख्म जख़्म खाकर, घुटकर, आंसू पीकर सब सह जाता है 
वह सिंह से शिकायत नहीं करता
 
उसे जंगल से निकाले जाने का डर हो जाता है
 
लोमड़ी अपनी धूर्तता के जाल में उलझाकर
 
निरीह प्राणियों के दौड़ने की क्षमता को
 
खुरचकर पस्तहाल कर जाती है
 
लोमड़ी के चेहरे पर साधुता का ढोंग
 
स्पष्ट झलकता है,
 
लोमड़ी कभी-कभी फीकी मुस्कान मुस्काती है,
 
सिंह तो एक मोहरा है,
 
जंगल का राज लोमड़ियों से चलता है</poem>