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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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<Poem>
जाने कितने कमरों में भरा हुआ है
 
मेरे होने का एहसास
 
जाने कितने बिस्तरों को मालूम है
 
मेरी देह की गंध
 
जाने कितनी हथेलियों में मौजूद है
 
मेरी साँस की लपटें
 
जाने कितनी अंगुलियों में पोशीदा है
 
मेरे स्पर्श का रंग
 
जाने कितनी आँखों में ज़िंदा है
 
मेरे चेहरे की चुभन
 
जाने कितनी रातों में क़ैद है
 
मेरी अधूरी करवट
 
जाने कितने अक्षरों में फैला है
 
मेरा निज़ी एकांत
 
जाने कितने पन्नों पर पसरी है
 
मेरी लिखी कविता
 
सोचता हूँ कितना बिखर गया हूँ मैं
 
सोचता हूँ कितना सिमट गया हूँ मैं
<Poem>
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