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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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मेरे कमरे के कोने में अब भी रोज़ाना
साँस लेती है तेरी एक अधुरी करवट

स्याह रात के जंगल में प्यास नंगी है
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