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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
}}
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मैं कल गया था 'निराला' के बाग़ में
माँग कर लाया हूँ एक 'जूही की कली'
तुम्हारे दामन को सजाने के लिए
</poem>
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मैं कल गया था 'निराला' के बाग़ में
माँग कर लाया हूँ एक 'जूही की कली'
तुम्हारे दामन को सजाने के लिए
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