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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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सोचता हूँ कि खुदकशी कर लूँ – हमने कहा
सोचती हूँ कि खुदकशी कर लूँ – उसने कहा

वक़्त की टूटते इक शाख़ पर खड़े थे हम
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