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{{KKRachna
|रचनाकार=अलका सिन्हा
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<poem>
ग्राहक को कपड़े देने से ठीक पहले तक
कोई तुरपन, कोई बटन
टांकता टाँकता ही रहता है दर्ज़ी।दर्ज़ी ।
परीक्षक के पर्चा खींचने से ठीक पहले तक
सही, गलतग़लत, कुछ न कुछलिखता ही रहता है परीक्षार्थी।परीक्षार्थी ।
अंतिम सांस साँस टूटने तक
चूक-अचूक निशाना साधे
लड़ता ही रहता है फ़ौजी।फ़ौजी ।
कोई नहीं डालता हथियार
कोई नहीं छोड़ता आस
अंतिम सांस तक।साँस तक ।
</poem>
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