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{{KKRachna
|रचनाकार=अलका सिन्हा
|संग्रह= }}{{KKCatKavita‎}}
<poem>
अभी तो मैंने
नहीं गढ़ा गया था
स्पन्दनहीन मैं
महज़ मांस माँस का एक लोथड़ा
नहीं, इतना भी नहीं
बस, लावा भर थी...
निकल आया लावा
थर्रा गई धरती
स्याह पड़ गया आसमान।आसमान ।
रूपहीन, आकारहीन,
अस्तित्वहीन मैं
अभी बस एक चिह्न भर ही तो थी
जिसे समाप्त कर दिया तुमने।तुमने ।
सोचती हूं कितनी सशक्त है
मेरी पहचान
कि जिसे बनाने में
पूरी उम्र लगा देते हैं लोग।लोग ।
जीवन पाने से भी पहले
और अधिक जीने की !
मुझे अफसोस अफ़सोस नहीं
कि मेरी हत्या की गई !
</poem>
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