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92'''092.रागटोड़ी'''सीयमुनि-रामकी सुन्दरतापर तुलसिदास बलि जाइ पदरेनु रघुनाथ माथे धरी है |रामरुख निरखि लषनकी रजाइ पाइ,धरा धरा-धरनि सुसावधान करी है || सुमिरि गनेस-गुर, गौरि-हर भूमिसुर,सोचत सकोचत सकोची बानि धरी है |दीनबन्धु, कृपसिन्धु साहसिक, सीलसिन्धु,सभाको सकोच कुलहूकी लाज परी है || पेखि पुरुषारथ, परखि पन, पेम, नेम,सिय-हियकी बिसेषि बड़ी खरभरी है |दाहिनोदियो पिनाकु, सहमि भयो मनाकु,महाब्याल बिकल बिलोकि जनु जरी है || सुर हरषत, बरषत फूल बार बार,सिद्ध-मुनि कहत, सगुन, सुभ घरी है |राम बाहु-बिटप बिसाल बौण्ड़ी देखियत,जनक-मनोरथ कलपबेलि फरी है || लख्यो न चढ़ावत, न तानत, न तोरत हू,घोर धुनि सुनि सिवकी समाधि टरी है |प्रभुके चरित चारु तुलसी सुनत सुख,एक ही सुलाभ सबहीकी हानि हरी है || 
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