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शिकवा / इक़बाल

No change in size, 16:56, 7 जून 2011
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'''टिप्पणी: शिकवा इक़बाल की शायद सबसे चर्चित रचना है जिसमें उन्होंने मुस्लिमों के स्वर्णयुग को याद करते हुए ईश्वर से मुसलमानों की हालत के बारे में शिकायत की है ।'''
क्यूँ ज़ियाकार बनूँ, सूद फ़रामोश रहूँ
कौम अपनी जो ज़रोमाल-ए-जहाँ पर मरती
बुत फरोशी के एवज़ बुत-शिकनी क्यों करती ?
 
टल न सकते थे अगर जंग में अड़ जाते थे
किसने ठंडा किया आतिशकदा<ref>अग्निगृह, इस्लाम के पूर्व ईरान के लोग आग और देवी-देवताओं की पूजा करते थे</ref>-ए-ईरां को ?
किसने फिर ज़िन्दा किया दज़तराएतज़कराए-ए-यज़दां को ?
कौन सी क़ौम फ़क़त<ref> सिर्फ़</ref> तेरी तलबगार हुई ?
आ गया ऐन लड़ाई में अगर वक़्त-ए-नमाज़
हिब्ला क़िब्ला रूहों के ज़मीं बोश बोस हुई क़ौम-ए-हिजाज़ ।
एक ही सम्त में खड़े हो गए महमूद -ओ- अयाज़ <ref> सुत्लान महमूद ग़ज़नी का एक ग़ुलाम अयाज़ नाम से था जिसकी बन्दगी से ख़ुश होकर सुल्तान ने उसे शाह का दर्जा दिया था और लाहौर को सन् १०२१ में बड़ी मुश्किलों से जीतने के बाद, उसे वहाँ का राजा बनाया था । </ref>
न कोई बन्दा रहा, और न कोई बन्दा नवाज़ ।
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