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जब बुरा बन गया, भला न हुआ / श्रद्धा जैन
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|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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मुझसे इतना भी हौसला न हुआ
जब बुरा बन गया, भला न हुआ
ज़ख्म के फूल अब भी ताज़ा हैं
दूर होकर भी फासला न हुआ
तेरी आहट क़दम-क़दम पर थी
ज़िंदगी में कभी खला न हुआ
होने वाली है कोई अनहोनी
वक़्त पर एक फ़ैसला न हुआ
रेज़ा-रेज़ा बिखर गए सपने
लोग कहते हैं मसअला न हुआ
</poem>
Shrddha
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