भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} :::चल बंजारे, तुझे निमंत्रित क…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


:::चल बंजारे,

तुझे निमंत्रित करती धरती नई,

::नया ही आसमान!

:::चल बंजारे-


दूर गए मधुवन रंगराते,

तरू-छाया-फल से ललचाते,

भृंग-विहंगम उड़ते-गाते,

:::प्‍यारे, प्‍यारे।

:::चल बंजारे,

तुझे निमंत्रित करती धरती नई,

::नया ही आसमान!

:::चल बंजारे-


छूट गई नदी की धारा,

जो चलती थी काट कगारा,

जो बहती थी फाँद किनारा,

मत पछता रे।

:::चल बंजारे,

तुझे निमंत्रित करती धरती नई,

::नया ही आसमान!

:::चल बंजारे-


दूर गए गिरिवर गवींले,

धरती जकड़े, अम्‍बर कीले,

बीच बहाते निर्झर नीले,

:::फेन पुहारे।

:::चल बंजारे,

तुझे निमंत्रित करती धरती नई,

::नया ही आसमान!

:::चल बंजारे-


पार हुए मरूतल के टीले,

सारे अंजर-पंजर ढीले,

बैठ न थककर कुंज-करीले,

:::धूल-धुआँरे!

:::चल बंजारे,

तुझे निमंत्रित करती धरती नई,

::नया ही आसमान!

:::चल बंजारे-


चलते-चलते अंग पिराते,

मन गिर जाता पाँव उठाते,

अब तो केवल उम्र घटाते

:::साँझ-सकारे।

:::चल बंजारे,

तुझे निमंत्रित करती धरती नई,

::नया ही आसमान!

:::चल बंजारे-


क्‍या फिर पट-परिवर्तन होगा?

क्‍या फिर तन कंचन होगा?

क्‍या फिर अमरों-सा मन होगा?

आस लगा रे।

:::चल बंजारे,

तुझे निमंत्रित करती धरती नई,

::नया ही आसमान!

:::चल बंजारे-


जब तक तेरी साँस न थमती, थमे न तेरा

::क़दम, न तेरा कंठ-गान!

:::चल बंजारे-
195
edits