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|रचनाकार= महादेवी वर्मा
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अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है !
 
यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये,
 
यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये,
 
स्वाति को खोजा नहीं है औ' न सीपी को पुकारा,
 
मेघ से माँगा न जल, इनको न भाया सिंधु खारा !
 
शुभ्र मानस से छलक आए तरल ये ज्वाल मोती,
 
प्राण की निधियाँ अमोलक बेचने का धन नहीं है ।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है !
 
नमन सागर को नमन विषपान की उज्ज्वल कथा को
 
देव-दानव पर नहीं समझे कभी मानव प्रथा को,
 
कब कहा इसने कि इसका गरल कोई अन्य पी ले,
 
अन्य का विष माँग कहता हे स्वजन तू और जी ले ।
 
यह स्वयं जलता रहा देने अथक आलोक सब को
 
मनुज की छवि देखने को मृत्यु क्या दर्पण नहीं है ।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है !
 
शंख कब फूँका शलभ ने फूल झर जाते अबोले,
 
मौन जलता दीप , धरती ने कभी क्या दान तोले?
 
खो रहे उच्छ्‌वास भी कब मर्म गाथा खोलते हैं,
 
साँस के दो तार ये झंकार के बिन बोलते हैं,
 
पढ़ सभी पाए जिसे वह वर्ण-अक्षरहीन भाषा
 
प्राणदानी के लिए वाणी यहाँ बंधन नहीं है ।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है !
 
किरण सुख की उतरती घिरतीं नहीं दुख की घटाएँ,
 
तिमिर लहराता न बिखरी इंद्रधनुषों की छटाएँ
 
समय ठहरा है शिला-सा क्षण कहाँ उसमें समाते,
 
निष्पलक लोचन जहाँ सपने कभी आते न जाते,
 
वह तुम्हारा स्वर्ग अब मेरे लिए परदेश ही है ।
 
क्या वहाँ मेरा पहुँचना आज निर्वासन नहीं है ?
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है !
 
आँसुओं के मौन में बोलो तभी मानूँ तुम्हें मैं,
 
खिल उठे मुस्कान में परिचय, तभी जानूँ तुम्हें मैं,
 
साँस में आहट मिले तब आज पहचानूँ तुम्हें मैं,
 
वेदना यह झेल लो तब आज सम्मानूँ तुम्हें मैं !
 
आज मंदिर के मुखर घड़ियाल घंटों में न बोलो
 
अब चुनौती है पुजारी में नमन वंदन नहीं है।
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है !
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