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एक बिजली-सी घटाओं से निकलती देखी / गुलाब खंडेलवाल
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18:58, 30 जून 2011
कोई आया था लटें खोले हुए पिछली रात
आख़िरी वक़्त ये
तकदीर
तक़दीर
बदलती देखी
देखिये, हमको कहाँ राह लिए जाती है
अब तो
मंजिल
मंज़िल
भी यहाँ साथ ही चलती देखी
होश इतना था किसे उठके जो प्याला लेता!
Vibhajhalani
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