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अक्स हम उनका उतारा किये हैं कागज़ पर
कीजिये जब भी ज़रा गौरग़ौर, नज़र आता है
इस बयाबान के आगे भी शहर है,ऐ दोस्त!
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है
कोई कोयल न तुझे ढूँढती ढूँढ़ती फिरती हो, गुलाब!
आज आमों पे नया बौर नज़र आता है
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