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Kavita Kosh से
मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख्वाब ख़्वाब नहीं
मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं
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