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न कुम्हलाये, प्रभो! यह बाग़ मेरा
'विषमता, फूट, अत्याचारमिथ्याचार, भागे
सभी का हो उदय, नव ज्योति जागे
विजित हों प्यार से तक्षक विषैले
दयामय! विश्व में सद्भाव फैले'
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