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शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
हर सदा सादा वरक़ <ref>पत्ता </ref> जिस सुख़न-ए-कस्ता कुश्ता से ख़ूँ है
शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
जो संग-ए-सर-ए-राह <ref>रास्ते का पत्थर </ref> की मानिंद निगूँ है ।
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<h2>शब्दार्थ </h2>
<references/>