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आमुख / गुलाब खंडेलवाल

26 bytes added, 21:40, 20 जुलाई 2011
<poem>
आप महान हैं , कविवर!
परन्तु क्या आपने कभी सोचा है
कि आपकी चाह किसे है,
आपकी यह अद्भुत काव्य-कला !
आपको कौन पढता पढ़ता होगा!
क्या वह माध्यमिक पाठशाला का अध्यापक
जिसे खाली समय काटने को साथी नहीं मिलते!
अथवा आरामकुर्सी पर अधलेटा वह पेंशनभोगी
जिसके अब हाथ-पांव पाँव भी नहीं हिलते!
या तकादे को गया वह प्यादा
जो खाकर लेते कर्जदार की प्रतीक्षा में झख मारता है,
नैहर का भरा-पूरा घर पुकारता है!
यही सब तो हैं आपके अनुरक्त, भक्त
जो अवकाश के क्षणों में आपको पढते पढ़ते होंगे,उनके पास कहां कहाँ है गवांने गवाँने को फालतू वक्तफ़ालतू वक़्तजो जीवन के पथ पर बेतहाशा बढते बढ़ते होंगे,
बडे-बडे उद्योग-धंधों द्वारा
देश को समृध्दि से मढते होंगे,
या ईंट पर ईंट रखते हुए
सरकारी दफ्तरों दफ़्तरों में अपना भविष्य गढते गढ़ते होंगे।
कवियों के लिए तो
अपने किसी समकालीन को छूना भी पाप है,
यदि वे भूल से किसी की कोई कृति देख भी लेते हैं
तो बस यही दिखाने को
कि कहां कहाँ उसमें पुराने कवियों का भावापहरण है, त्रुटियां हैं।त्रुटियाँ हैंकहां कहाँ उस पर उनकी अपनी रचनाओं की छाप है।
विद्वानों की भी भली कही!
यहां विद्वान वही कहलाता है जो हर धनुष-भंजक से
यह कैसे हो सकता है!
ऐसा कौन है
जो एक साथ ही हंस हँस सकता है और रो सकता है!इसलिए , हे महाकवि!
सपने में आप इंद्र, कुबेर या कार्तिकेय कुछ भी बन जाएं,
चाहे जितने विशेषणों से अपने को सजा लें,
आईने के सम्मुख कितने भी तन जाएंजायें,
यथार्थ के क्षेत्र में तो आपको सदा
धूल ही चाटनी होगी,
कमाऊ पुत्रों की उपेक्षा झेलनी होगी,
पत्नी की झिडकियों झिड़कियों में आयु काटनी होगी।
भास हो या कालिदास,
सबने भोगा है यह संत्रास,
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