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मेरे भारत मेरे स्वदेश
 
तू चिर -प्रशांत, तू चिर -अजेय,
सुर-मुनि-वन्दित, स्थित, अप्रमेय
हे सगुन ब्रह्म, वेदादि गेय!
हे चिर -अनादि! हे चिर -अशेष!
 
गीता-गायत्री के प्रदेश!
सीता-सावित्री के प्रदेश!
गंगा-यमुनोत्री के प्रदेश
हे आर्य-धरिती धरित्री के प्रदेश
 
तू राम-कृष्ण की मात्रीमातृ-भूमि
सौमित्रि-भरत की भ्रातृ-भूमि
जीवन-दातृ, भाव-धातृ भूमि
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