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विविधा / गुलाब खंडेलवाल

No change in size, 20:47, 21 जुलाई 2011
आज हर ईंट वहाँ की मुझे बुलाती है
उर्वशी लौट गयी स्वर्गपुरी को लेकिन 
पुरुरवा मैं कि मुझे जिसे नींद नहीं आती है 
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