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'मुँह भी नहीं खोल जो पाता
मिलता कौन सिवा लघु भ्राता!
मैंने प्रभु आज्ञा से , माता
यह विष गले उतारा'
 
'रहते नाथ न राजभवन में
मेरा वश चालता तो  क्षण चलता तो क्षण में
नई अयोध्या रचता वन में
ला सरजू की धारा
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