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'मैं था भाई बहुत दुलारा / गुलाब खंडेलवाल
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21:27, 21 जुलाई 2011
'मुँह भी नहीं खोल जो पाता
मिलता कौन सिवा लघु भ्राता!
मैंने प्रभु आज्ञा से
,
माता
यह विष गले उतारा'
'रहते नाथ न राजभवन में
मेरा वश
चालता तो क्षण
चलता तो क्षण
में
नई अयोध्या रचता वन में
ला सरजू की धारा
Vibhajhalani
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