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Kavita Kosh से
मिलता कौन सिवा लघु भ्राता!
मैंने प्रभु आज्ञा से, माता
यह विष गले उतारा'
'रहते नाथ न राजभवन में
मेरा वश चलता तो क्षण में
नई अयोध्या रचता वन में
ला सरजू की धारा
'ओट घड़ी भर की जब ले ली
तूने क्या-क्या विपद न झेली!
कैसे वन में आज अकेली
छोडूँ, देवि! दुबारा!'
'मैं था भाई बहुत दुलारा
मेरे सिवा न्याय यह निष्ठुर सधता किसके द्वारा!'
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