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मुख-सम्मुख उड़ता पीताम्बर
किसने फिर वे रास मनोहर
वन में रचवाये थे!
 
शंका क्यों रहने दें मन में!
चलकर सखि! देखें मधुवन में
पथ के काँटों ने क्षण-क्षण में
आँचल उलझाये थे
 
मुझे याद है हरि ने छिपकर
मुग्ध दृष्टि डाली थी मुझपर
क्यों अंगों में सिहर रही भर
भेंट न यदि पाये थे!
रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!
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