Changes

राम अवध लौटे ज्यों वन से
पर क्या फल इस शुभागमन से
यदि तू भेंट न पाये!
 
आज न हो पहली छवि सुन्दर
रोग-शोक से, सखि! तू जर्जर
पति के हित वैसी ही है पर
उठ निज मान भुलाये
 
किन्तु ठहर, ले धूल चरण की
हमें सुना लेने दे मन की
इतने दिन जो कसक सहन की
दबती अब न दबाये
रत्ना यों मुँह रह न छिपाए
बहुत दिनों पर भूले-भटके तेरे पति घर आये
<poem>
2,913
edits