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क़ातिल / अनिल विभाकर

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<poem>
ख़तरनाक से ख़तरनाक बातें कर जाते हैं लोग
बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में
यह खूबसूरत शैली उनमें जन्मजात होती है

कुछ-कुछ तो दिखने में वैसे ही होते हैं खूबसूरत
वे ख़तरनाक होते हैं या खूबसूरत
यह समझना आपका काम है

एक ने कहा आदमी और पौधे में
एक बहुत ही खराब आदत होती है
एक जगह रहने को थोड़ा-सा समय मिला नहीं कि पसारना शुरू
कर देते हैं अपनी जड़ें
थोड़े-थोड़े समय पर बदल देनी चाहिए इनकी जगह

यह खूबसूरत सूत्रवाक्य हो सकता है
हो सकता है सुनने में कुछ लोगों को अच्छा भी लगा हो
ऐसा कहनेवाला मुझे किसी क़ातिल से कम नहीं लगता

जड़ें नहीं पनपेंगी तो सूख जाएंगे पौधे
आदमी भी कैसे पनपेगा मजबूत जड़ों के बिना

हैरत की बात तो यह है
ऐसा कहनेवाला खुद नहीं बदलना चाहता अपनी जगह
</poem>