भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

त्रिलोचन / परिचय

613 bytes added, 15:38, 31 जुलाई 2011
/* जीवन परिचय */
उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव से बनारस विश्वविद्यालय तक अपने सफर में उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखीं और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। शास्त्री बाजारवाद के धुर विरोधी थे। हालांकि उन्होंने हिंदी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन किया। उनका कहना था, भाषा में जितने प्रयोग होंगे वह उतनी ही समृद्ध होगी। शास्त्री ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया। वह नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक थे।
जीवन के अंतिम वर्ष उन्होंने अपने सुपुत्र अमित प्रकाश सिंह के परिवार के साथ हरिद्वार के पास ज्वालापुर में बिताए। अंतिम वर्षों में भी काफी जीवंत रहे। वार्धक्य ने शरीर पर भले ही असर डाला था पर उनकी स्मृति या रचनात्मकता मंद नहीं पड़ी थी।
9 दिसंबर 2007 को ग़ाजियाबाद में उनका निधन हो गया।