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इंतज़ार की रात / इब्ने इंशा

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{{KKRachna
|रचनाकार=इब्ने इंशा
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उमड़ते आते हैं शाम के साये

दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी

एक दुनिया उदास है लेकिन

कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी

मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ?

वो चला कारवाँ सितारों का

झूमता नाचता सूए-मंज़िल

वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी

वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल

डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?



उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक


(रचनाकाल : 1945)
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