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नया पृष्ठ: <poem> खुशियों को मैं तलाशती रही हूँ मरीचिका में 2 सच्चा चेहरा दिखाता …
<poem>
खुशियों को मैं
तलाशती रही हूँ
मरीचिका में
2
सच्चा चेहरा
दिखाता है आईना
हम सबका
3
कर्मों का तेरे
देना होगा हिसाब
तुझे खुद ही
4
सुनना है तो
बस सच की ही तू
धुन को सुन
5
बुनना है तो
प्रेम के धागों से तू
रिश्तों को बुन
6
ज़िन्दगी तो है
इम्तहान के जैसी
मुश्किल बड़ी
7
सुरीले गीत
कोई भी यहॉं अब
गाता नहीं है़
8
चुनना है तो
फूलों के संग -संग
काँटें भी चुन
9
पीर जो बसी
हदय में गीत का
रूप लेकर
10
चाहो अगर
छूना आसमान को
फैलाओ पंख
11
चाहत है तो
खुद को ही भुला के
पायेगा खुदा
12
सुन्दर जिस्म
क्या रखता मायने
दिल हो बुरा
13
देखते सभी
मन के आईने में
सच्चा चेहरा
13
टिक् -टिक् करती
घड़ी की ये सुइयाँ
थकती नहीं
14
भाग्य रेखा को
नहीं बदल सका
कोई भी इंसाँ
15
जिंदा तो रहे
दफन मुर्दों -जैसे
जुल्म ही सहे
16
बाज़ का पंजा
जकडे़ था गर्दन
आज था छूटा
17
शाम के वक्त
लौटते हैं पंछी भी
आशियाने में
18
तेल नहीं है
चिरागों में रोशन
जो दिल करे
19
रात औ दिन
खून व पसीने से
बनाई छत
20
कभी था बेटा
पति, पिता व दादा
मेरा जीवन
21
हिला ना सका
दुनिया का कोई भी
गम उसको
22
अब शहर
होने लगे हैं सभी
भीड़ से भरे
23
खुशबू हूँ मैं
न करो जुदा मुझे
इन फूलों से
24
सिसक रहे
हरे भरे वृक्ष भी
अत्याचारों से
25
नहीं बनाते
पंछी भी आशियाना
सूखे वृक्षों पे
26
नई पीढ़ी को
माता -पिता की सेवा
नहीं है भाती
27
मुस्काए फूल
देखकर मालिन
चढ़े शिवाले
28
कुछ बातें तो
मौन रहकर भी
कही जाती हैं
-0-
</poem>
खुशियों को मैं
तलाशती रही हूँ
मरीचिका में
2
सच्चा चेहरा
दिखाता है आईना
हम सबका
3
कर्मों का तेरे
देना होगा हिसाब
तुझे खुद ही
4
सुनना है तो
बस सच की ही तू
धुन को सुन
5
बुनना है तो
प्रेम के धागों से तू
रिश्तों को बुन
6
ज़िन्दगी तो है
इम्तहान के जैसी
मुश्किल बड़ी
7
सुरीले गीत
कोई भी यहॉं अब
गाता नहीं है़
8
चुनना है तो
फूलों के संग -संग
काँटें भी चुन
9
पीर जो बसी
हदय में गीत का
रूप लेकर
10
चाहो अगर
छूना आसमान को
फैलाओ पंख
11
चाहत है तो
खुद को ही भुला के
पायेगा खुदा
12
सुन्दर जिस्म
क्या रखता मायने
दिल हो बुरा
13
देखते सभी
मन के आईने में
सच्चा चेहरा
13
टिक् -टिक् करती
घड़ी की ये सुइयाँ
थकती नहीं
14
भाग्य रेखा को
नहीं बदल सका
कोई भी इंसाँ
15
जिंदा तो रहे
दफन मुर्दों -जैसे
जुल्म ही सहे
16
बाज़ का पंजा
जकडे़ था गर्दन
आज था छूटा
17
शाम के वक्त
लौटते हैं पंछी भी
आशियाने में
18
तेल नहीं है
चिरागों में रोशन
जो दिल करे
19
रात औ दिन
खून व पसीने से
बनाई छत
20
कभी था बेटा
पति, पिता व दादा
मेरा जीवन
21
हिला ना सका
दुनिया का कोई भी
गम उसको
22
अब शहर
होने लगे हैं सभी
भीड़ से भरे
23
खुशबू हूँ मैं
न करो जुदा मुझे
इन फूलों से
24
सिसक रहे
हरे भरे वृक्ष भी
अत्याचारों से
25
नहीं बनाते
पंछी भी आशियाना
सूखे वृक्षों पे
26
नई पीढ़ी को
माता -पिता की सेवा
नहीं है भाती
27
मुस्काए फूल
देखकर मालिन
चढ़े शिवाले
28
कुछ बातें तो
मौन रहकर भी
कही जाती हैं
-0-
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