भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
हमारे प्यार की तड़पन भी देख ली होती!
गए तो छोड़ के छोड़के दुनिया की आँधियों में हमें
कभी तो धूल भी आँचल से पोंछ दी होती