भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> अटीं-पटीं द…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
अटीं-पटीं दीवारें रहतीं
विज्ञापन के पर्चों से

गयी कमाई दाल-भात में
ले डूबी कभी दवाई
सुरसा-सा मुँह बाये बैठी
आँगन-द्वारे महँगाई

प्याज झरप भर रहा आँख में
तीखा ज्यादा मिर्चों से

किया जतन पर जोड़ न पाये
मिल-जुलकर दाना-पानी
एक तिहाई तेल निकलता
पिर करके पूरी घानी

कद्दा लागत जोड़-घटा कर
उबर न पाये खर्चों से

नारों में छुप गयी हकीकत
करतूतें सब मंचों की
चिड़िया भूखी थी भूखी है
पौ-बारह सरपंचों की

धू-धू-कर जलतीं समिधाएँ
देवालय तक चर्चों से
</poem>
273
edits