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|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
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<Poem>
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!

खनन माफ़िया
मिलकर लूटें
जल औ' जंगल
नित-नित टूटें

मैट रहे
कुदरत का लेखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!

बोली 'छविया'
धरा-दबोचा
नेता-मालिक
सबने नोंचा

समाचार
दुनिया ने देखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!

दुस्साहस-
क्रशरों का बढ़ता
चट्टानों से
चूना झड़ता

टूट रही
है जीवन रेखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
</poem>
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