भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
मन पराग-केसर कुम्हलाए
तुम न आए
सुरभित सुमन, गूँज भँवरे की
मन में कितने फूल बिछाए