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कि तुम मुझे मिलीं / रामानन्द दोषी
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|रचनाकार=रामानन्द दोषी
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कि तुम मुझे मिलीं
कि साँस में सुहासिनी
सिहर-सिमट समा रही
कि साँस का सुहाग
माँग में निखर उभर उठा
कि गंध-युक्त केश में
बाधा पवन सिहर उठा
कि प्यार-पीर में विभौर
बन चली कली सुमन
कि तुम मुझे मिलीं
मिला विहान को नया सृजन ।
</poem>
अनिल जनविजय
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