1,236 bytes added,
15:31, 17 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
तुझसे लड़ जाय नज़र, हमने ये कब चाहा था!
प्यार भी हो ये अगर, हमने ये कब चाहा था!
दोस्ती में गले मिलते थे हम कभी, लेकिन
हो तेरी गोद में सर, हमने ये कब चाहा था!
यों तो मंज़िल पे पहुँचने की ख़ुशी है, ऐ दोस्त!
ख़त्म हो जाय सफ़र, हमने ये कब चाहा था!
तुझसे मिलने को लिया भेस था दीवाने का
उठके आया है शहर, हमने ये कब चाहा था!
जब कहा उनसे, 'मिटे आपकी चाहत में गुलाब'
हँसके बोले कि मगर हमने ये कब चाहा था!
<poem>