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05:14, 22 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मयंक अवस्थी
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<poem>
इसी ख़ातिर तो उसकी आरती हमने उतारी है
ग़ज़ल भी माँ है और उसकी भी शेरों की सवारी है
मुहब्बत धर्म है हम शायरों का दिल पुजारी है
अभी फ़िरकापरस्तों पे हमारी नस्ल भारी है
सितारे , फूल जुगनू चाँद, सूरज हैं हमारे सँग
कोई सरहद नहीं ऐसी अजब दुनिया हमारी है
वो दिल के दर्द की खुश्बू आलम है कि मत पूछो
तुम्हारी राह में ये उम्र जन्नत में गुज़ारी है
ये दुनिया क्या सुधारेगी हमें, हम तो हैं दीवाने
हमीं लोगों ने अबतक अक्ल दुनिया की सुधारी है
</poem>
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