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द्वन्द / निशांत मिश्रा

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वर्तमान में बैठा,
कल्पना और यथार्थ की,
पारस्परिक तुलना कर रहा हूँ,
आज खुद अपने आपसे,
यह द्वन्द कर रहा हूँ.....
यथार्थ की भयानकता,
विवश करती है मुझे,
नतमस्तक होने को अपने समक्ष,
न हो ऐसा कोशिश कर रहा हूँ,
आज खुद अपने आपसे,
यह द्वन्द कर रहा हूँ.....
कल्पना के घोड़े पर सवार हो,
दूर गगन में ले जाने को,
मेरा पागल मन आतुर है,
आकाश की बुलंदियों पर पहुँचने की,
नाकाम कोशिश कर रहा हूँ
आज खुद अपने आपसे,
यह द्वन्द कर रहा हूँ.....</poem>
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