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{{KKRachna
|रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग'
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हमने जो भोगा सो गाया ।

अकथनीयता को दी वाणी
वाणी को भाषा कल्याणी
कलम कमण्डल लिये हाथ में
दर-दर अलख जगाया
हमने जो भोगा सो गाया ।

सहज भाव से किया खुलासा
आँखों देखा हुआ तमाशा
कौन करेगा लेखा-जोखा
क्या खोया, क्या पाया
हमने जो भोगा सो गाया ।

पीड़ओं के परिचायक हैं
और भला हम किस लायक हैं
अन्तर्मठ की प्राचीरों में
अनहद नाद गुँजाया
हमने जो भोगा सो गाया ।

</poem>