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खुद अपनी हक़परस्ती के लिए जो अड़ नहीं सकता / नवीन सी. चतुर्वेदी
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13:50, 29 अगस्त 2011
शराफ़त की हिमायत शायरी में ठीक लगती है।
सियासत में भले लोगों
को
का
झण्डा गड़ नहीं सकता।३।
सभी के साथ हैं कुछ ख़ूबियाँ तो ख़ामियाँ भी हैं।
Shrddha
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