भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: आदमीयत की वक़ालत कर रहा है आदमी|<br /> यूँ उज़ालों की हिफ़ाज़त कर रहा …
आदमीयत की वक़ालत कर रहा है आदमी|<br />
यूँ उज़ालों की हिफ़ाज़त कर रहा है आदमी|१|<br />
<br />
सिर्फ ये पूछा - भला क्या अर्थ है अधिकार का|<br />
वो समझ बैठे, बग़ावत कर रहा है आदमी|२|<br />
<br />
छीन कर कुर्सी, अदालत में घसीटा है फ़क़त|<br />
चोट खा कर भी, शराफ़त कर रहा है आदमी|३|<br />
<br />
आँखें मूंदे टेक्स भरता जा रहा है बेहिसाब|<br />
अनपढ़ों के जैसी हरक़त कर रहा है आदमी|४|<br />
<br />
जब ये चाहेगा बदल देगा ज़माने का मिजाज़|<br />
सिर्फ क़ानूनों की इज्ज़त कर रहा है आदमी |५|<br />
<br />
सल्तनत के तख़्त के नीचे है लाशों की परत|<br />
कैसे हम कह दें, हुक़ूमत कर रहा है आदमी|६|<br />
<br />
मुद्दतों से शह्र की ख़ामोशियाँ यह कह रहीं|<br />
आज कल भेड़ों की सुहबत कर रहा है आदमी|७|<br />