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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
वन जाने को राम नहीं तैयार, पढ़ा अख़बार !
दशरथ जी को दे दी है फटकार, पढ़ा अख़बार !
आदर्शों की ऐन वक्त पर मर जाती नानी
ब्रह्मलोक तक पसरा भ्रष्टाचार, पढ़ा अख़बार !
बन जाने..........................................................................</poem>